
काठमाडौं। हिमालयन बैंकका प्रमुख कार्यकारी अधिकृत अशोक राणा बढ्दो खराब ऋण, बिग्रँदो वासलात देखेर चिन्तित छन्।
चालु वर्षको पुस मसान्तमा हिमालयन बैंकको खराब ऋण ४.९५ प्रतिशत पुगेको छ। ऋण डुब्न थालेपछि करिब दुई अर्ब रुपैयाँ त नोक्सानी व्यवस्थापन (प्रोभिजनिङ) गर्नु परेको छ। खुद नाफा एक अर्ब नाघेको छ तर वितरणयोग्य नाफा ४ अर्ब ५२ करोड रुपैयाँ ऋणात्मक छ।
हिमालयन बैंकले २०७९ फागुन १२ गते सिभिल बैंकलाई गाभेर एकिकृत कारोबार सुरु गरेपछि हिसाबकिताब गोलमाल हुन थालेको भन्ने उनलाई लाग्छ। सिभिललाई गाभेपछि निक्षेप र ऋणको आकार त बढ्यो तर त्यसले सकारात्मक ‘सिनर्जी’ भने दिएको देखिँदैन।
‘कति ऋण धितोले नधान्ने पनि रहेछ। आकार मात्र ठूलो,’ राणाले बिजमाण्डूसँग निराशा पोखे, ‘निक्षेप पनि लामो अवधिका लागि महँगोमा उठाएका कारण तत्कालै घटाउन सक्ने अवस्था छैन।’ हिमालयन बैंकको आधार दर १०.५९ प्रतिशत छ, जुन वाणिज्य बैंकहरुमध्येकै सबैभन्दा उच्च हो।
मर्जरअघि हिमालयन बैंकको निक्षेप एक खर्ब ७६ अर्ब २५ करोड र ऋण एक खर्ब ६१ अर्ब २७ करोड रुपैयाँ थियो। सिभिलको निक्षेप ९४ अर्ब ७१ करोड र ऋण ८८ अर्ब ५६ करोड रुपैयाँ थियो।
दुई बैंक मर्ज हुँदा निक्षेप र ऋणको आकार बढ्यो तर गुणस्तर खस्किएको उनको बुझाइ छ। गत वर्षको नाफाबाट यसपालि बैंकले लगानीकर्तालाई लाभांशसमेत दिन सकेन। बैंकले पोहोर ८ प्रतिशत बोनस सेयर र ११.११ प्रतिशत नगद गरेर १९.११ प्रतिशत लाभांश दिएको थियो।

नेपाल राष्ट्र बैंकले १४ वर्षअघि मर्जर तथा प्राप्तिलाई प्रमुख एजेण्डा बनाएपछि यसले गति लिन थालेको थियो। ३२ वटा पुगेको बैंकको संख्या डा. युवराज खतिवडा गभर्नर हुँदा २९ वटामा झर्यो। डा. चिरञ्जीवी नेपालको पालामा २७ वटामा समेटियो। महाप्रसाद अधिकारी गभर्नर भएपछि यसले थप गति लियो- अहिले संख्या २० मा झरेको छ।
गत आर्थिक वर्ष मात्र १२ वटा बैंक गाभिएर ६ वटामा सिमित भएका थिए। त्यसअघिको वर्ष नबिलले नेपाल बंगलादेश बैंक गाभेको थियो।
मर्जरमा जानुअघिको अवस्था | निक्षेप | ऋण | नोक्सानी व्यवस्थापनअघिको सञ्चालन नाफा | खुद नाफा |
एनसीसी बैंक | 127,024,283 | 117,364,129 | 782,152 | 516,836 |
कुमारी बैंक | 173,976,523 | 161,457,625 | 1,360,678 | 1,001,459 |
प्रभु बैंक | 170,409,201 | 156,960,367 | 1,256,088 | 705,008 |
सेञ्चुरी बैंक | 95,275,404 | 87,137,749 | 673,241 | 318,513 |
ग्लोबल आइएमई बैंक | 279,869,723 | 271,712,243 | 2,418,775 | 1,189,544 |
बैंक अफ काठमाण्डू | 109,401,752 | 104,824,119 | 808,391 | 280,615 |
नेपाल इन्भेष्टमेन्ट बैंक | 192,301,438 | 175,657,349 | 1,911,083 | 1,140,598 |
मेगा बैंक | 155,163,054 | 153,408,680 | 1,205,861 | 509,169 |
हिमालयन बैंक | 176,250,073 | 161,274,939 | 2,888,171 | 954,705 |
सिभिल बैंक | 94,710,053 | 88,566,860 | 1,357,355 | 637,023 |
लक्ष्मी बैंक | 150,135,389 | 136,655,494 | 3,091,539 | 1,265,344 |
सनराइज बैंक | 131,671,631 | 122,072,653 | 2,967,671 | 1,170,968 |
आर्थिक मन्दीका कारण व्यापार व्यवसाय सुकेको असर सबै बैंक तथा वित्तीय संस्थामा परेको छ- तर मर्जर भएका संस्थामा त्यसको असर दोब्बर देखिएको छ। कमजोर संस्थाहरु ठूलोमा मर्ज हुँदा समग्र वित्तीय अवस्थामा असर परेको बैंकरहरु बताउँछन्।
‘मर्जरपछि नयाँ व्यापार व्यवसायतिर ध्यान दिनै पाएको छैन। धेरै ऋणमा समस्या छ। त्यसलाई मिलाउँदा मिलाउँदै समय गइरहेको छ,’ प्रभु बैंकका प्रमुख कार्यकारी अधिकृत अशोक शेरचन भन्छन्, ‘सबै ध्यान रिकभरीमा मात्र छ।’
प्रभु बैंकले २०७९ पुस २६ गते सेञ्चुरी कमर्सियल बैंकलाई गाभेर एकीकृत कारोबार थालेको हो। सेञ्चुरी बैंकको पुँजीले नयाँ व्यापार बढाउन काम लाग्छ भन्ने लोभ प्रभु पक्षलाई थियो। तर, सेञ्चुरीसँगै यति धेरै खराब ऋण आयो कि उसको पुँजीले मात्र नपुगेर प्रभुको पुँजीसमेत प्रयोग गर्नु पर्यो।
हिमालयन बैंक (२०७९ फागुन १२) | २०८० पुस | २०८० असोज | २०८० असार | २०७९ चैत | २०७९ पुस |
निक्षेप | 298,033,161 | 280,367,787 | 275,310,994 | 263,485,453 | 176,250,073 |
ऋण | 246,377,370 | 245,125,203 | 240,713,939 | 249,166,763 | 161,274,939 |
प्रोभिजनिङ | 1,947,937 | 756,622 | 2,156,171 | 2,455,178 | 1,498,912 |
नाफा | 1,056,184 | 3,266,168 | 954,705 | ||
वितरणयोग्य नाफा | -4,523,398 | -1,162,749 | -711,469 | -1,322,988 | 87,263 |
खराब ऋण | 4.95% | 4.67% | 4.57% | 4.56% | 3.77% |
प्रति सेयर आम्दानी (रु.) | 13.89 | 19.51 | 19.19 | 15.04 | 13.63 |
आधार दर | 10.59% | 10.86% | 10.86% | 11.06% | 10.86% |
पुँजी कोष | 11.70% | 12.41% | 13.23% | 12.93% | 12.12% |
१२.९५ प्रतिशतको पुँजी कोष घटेर ११.८२ प्रतिशतमा आएको छ। करिब ४३ करोडको प्रोभिजनिङ सवा अर्ब नाघेको छ। १.९८ प्रतिशतको खराब ऋण अनुपात ४.९० प्रतिशत पुगेको छ। यसबाहेक प्रति सेयर आम्दानी घटेको छ। पोहोर लाभांश बाँडेको प्रभुले यसपालि दिन सक्दिन भनेर हात उठाइसकेको छ।
गत आर्थिक वर्ष मर्जरमा गएका वाणिज्य बैंकहरुको तथ्यांक विश्लेषण गर्दा कसैको पनि ‘पर्फर्मेन्स’ राम्रो छैन। गत वर्ष प्रभुसँग सेञ्चुरी, नेपाल इन्भेष्टमेन्टसँग मेगा, लक्ष्मीसँग सनराइज, हिमालयनसँग सिभिल, ग्लोबल आइएमइसँग बैंक अफ काठमाण्डू (बिओके) र कुमारीसँग नेपाल क्रेडिट एण्ड कमर्स (एनसीसी) बैंक गाभिएका थिए।
कुमारी बैंक (२०७९ पुस १७) | २०८० पुस | २०८० असोज | २०८० असार | २०७९ चैत | २०७९ पुस |
निक्षेप | 318,765,722 | 321,688,044 | 316,047,055 | 303,286,788 | 299,691,753 |
ऋण | 284,889,228 | 286,034,418 | 280,343,337 | 285,777,054 | 285,230,843 |
प्रोभिजनिङ | 2,766,077 | 2,183,140 | 5,735,843 | 3,960,213 | 1,434,658 |
नाफा | 263,935 | 1,957,107 | 1,530,707 | ||
वितरणयोग्य नाफा | -3,771,835 | -1,317,363 | -848,306 | 2,487 | 224,441 |
खराब ऋण | 4.97% | 4.89% | 4.77% | 3.97% | 3.15% |
प्रति सेयर आम्दानी (रु.) | 7 | 4 | 7 | 9 | 11.67 |
आधार दर | 10.28% | 10.91% | 10.90% | 10.93% | 11.73% |
पुँजी कोष | 12.08% | 12.08% | 12.65% | 12.90% | 12.73% |
यी सबै संस्थाको वितरणयोग्य नाफा ऋणात्मक छ भने खराब कर्जा ५ प्रतिशत नजिक पुगेको छ। सबैको पुँजी पर्याप्तता अनुपात घटेको छ। प्रति सेयर आम्दानी खस्किएको छ भने प्रोभिजनिङ बढेको छ।
‘दुई वटा संस्था जोडिँदा निक्षेप र ऋण बढ्नु त स्वाभाविक भयो। तर थप सिनर्जी खोइ त?,’ पूर्व बैंकर शोभनदेव पन्त भन्छन्, ‘संस्थाहरु अस्वाभाविक रुपमा ठूला भएका छन्। सुन्निएजस्ता देखिएका छन्।’ उनका अनुसार, बिग मर्जरले ‘गभर्नेन्स’ लाई छोपेको छ।
ग्लोबल आइएमइ बैंक (२०७९ पुस १९) | २०८० पुस | २०८० असोज | २०८० असार | २०७९ चैत | २०७९ पुस |
निक्षेप | 454,248,074 | 443,001,663 | 426,325,446 | 409,882,438 | 403,683,639 |
ऋण | 378,159,455 | 370,735,263 | 368,126,973 | 375,027,175 | 376,436,298 |
प्रोभिजनिङ | 4,136,018 | 1,781,772 | 3,426,139 | 2,710,773 | 1,129,181 |
नाफा | 1,225,752 | 6,694,358 | 2,782,379 | ||
वितरणयोग्य नाफा | -1,277,075 | 79,941 | 3,243,362 | 962,673 | 1,119,199 |
खराब ऋण | 4.68% | 4.38% | 3.15% | 3.96% | 2.92% |
प्रति सेयर आम्दानी (रु.) | 11.31 | 13.71 | 22.06 | 17.08 | 18.07 |
आधार दर | 9.60% | 10.07% | 10.20% | 10.69% | 10.80% |
पुँजी कोष | 12.37% | 13.27% | 13.34% | 12.75% | 12.57% |
नेपाल इन्भेष्टमेन्ट मेगा बैंकका प्रमुख कार्यकारी अधिकृत ज्योति पाण्डेलाई मर्जरबाट गरिने अपेक्षा र वास्तविकता निकै फरक अनुभव हुन्छ। ‘मर्जरअघि र पछिको बुकमै धेरै अन्तर आउने रहेछ,’ उनले भने, ‘मर्जरपछि डुबेको ऋण कसरी उठाउने भन्नेमै बढी समय गइरहेको छ। नयाँतिर त सोच्न पनि भ्याइएको छैन।’
प्रभु बैंक (२०७९ पुस २६) | २०८० पुस | २०८० असोज | २०८० असार | २०७९ चैत | २०७९ पुस |
निक्षेप | 281,304,828 | 276,148,727 | 289,090,927 | 277,451,905 | 270,923,379 |
ऋण | 239,477,548 | 244,636,293 | 245,186,003 | 249,750,519 | 253,076,639 |
प्रोभिजनिङ | 1,257,767 | 79,418 | 2,438,114 | 1,576,349 | 426,749 |
नाफा | 1,034,215 | 2,825,250 | 1,199,962 | ||
वितरणयोग्य नाफा | -1,867,468 | 163,474 | 161,655 | -182,956 | 364,224 |
खराब ऋण | 4.90% | 3.97% | 4.16% | 3.48% | 1.98% |
प्रति सेयर आम्दानी (रु.) | 6.12 | 17.57 | 12 | 11.07 | 10.19 |
आधार दर | 9.42% | 10.14% | 10.16% | 11.07% | 11.44% |
पुँजी कोष | 11.82% | 12.58% | 12.95% | 11.63% | 12.84% |
नेपाल इन्भेष्टमेन्ट बैंकले २०७९ पुस २७ गते मेगा बैंक नेपाललाई गाभेर एकीकृत कारोबार थालेको थियो। हरेक वर्ष आकर्षक लाभांश दिँदै आएको नेपाल इन्भेष्टमेन्ट बैंकले यसपालि केही पनि दिएन। खराब ऋण बढ्दा १३.९९ प्रतिशतको पुँजी पर्याप्तता अनुपात १२.७० प्रतिशतमा झरिसकेको छ। खराब ऋण अनुपात ४.७५ प्रतिशत पुगेको छ।
नेपाल इन्भेष्टमेन्ट मेगा बैंक (२०७९ पुस २७) | २०८० पुस | २०८० असोज | २०८० असार | २०७९ चैत | २०७९ पुस |
निक्षेप | 389,034,647 | 361,197,718 | 354,414,420 | 350,197,847 | 355,236,207 |
ऋण | 322,931,569 | 314,316,422 | 312,399,497 | 319,716,108 | 326,764,556 |
प्रोभिजनिङ | 2,867,846 | 640,675 | 2,441,571 | 701,907 | 608,343 |
नाफा | 1,522,298 | 4,296,623 | 2,086,307 | ||
वितरणयोग्य नाफा | -1,955,472 | -1,011,622 | 158,338 | -1,279,656 | -1,604,224 |
खराब ऋण | 4.75% | 4.83% | 4.35% | 3.94% | 3.71% |
प्रति सेयर आम्दानी (रु.) | 10.56 | 17.84 | 16.07 | 15.2 | 15.61 |
आधार दर | 9.41% | 9.99% | 9.36% | 10.16% | 10.42% |
पुँजी कोष | 12.70% | 13.54% | 14.10% | 13.99% | 13.28% |
मर्जर तथा प्राप्तिपछि जसरी बैंकहरुको गुणस्तरीय सम्पत्तिमा ह्रास आयो। त्यसलाई लिएर कतिपयले ‘बिग मर्जर’ एजेण्डा असफल भएको टिप्पणीसमेत गरेका छन्। उनीहरुको भनाइमा- मर्जरपछि पुँजी कोष बलियो हुनु पर्ने, ग्राहक सेवा सुविधाको लागत कम हुनु पर्ने, बैंकको समग्र खर्च घट्नु पर्ने, नाफा बढेर लाभांशका साथै सरकारको राजस्वमा पनि योगदान पुग्नुपर्ने थियो।
‘बिग मर्जरबाट बरु रोजगारी गुमेको छ, कर्मचारीको वृत्तिविकास रोकिएको छ, सेयरधनीको लाभांश गुमेको छ,’ राष्ट्र बैंकका पूर्व कार्यकारी निर्देशक नरबहादुर थापाले भने, ‘बिग मर्जरका बारेमा राष्ट्र बैंकले अध्ययन गर्न जरुरी छ, आखिर संख्या घट्नेबाहेक के हात पर्यो?’
राष्ट्र बैंकले पनि बिग मर्जरको एजेण्डालाई पूर्ण रूपमा त्यागेको छ। उसले चालु वर्षको मौद्रिक नीतिमा यो एजेण्डालाई खारेज गरेको छ। सरकारले पनि पोहोरबाटै बैंक मर्जरको एजेण्डालाई छाडेको छ।
लक्ष्मी सनराइज बैंक (२०८० असार २९) | २०८० पुस | २०८० असोज | २०८० असार | २०७९ चैत | २०७९ पुस |
निक्षेप | 310,591,321 | 292,198,666 | 296,243,475 | 150,135,389 | 145,718,212 |
ऋण | 256,269,599 | 257,686,550 | 258,431,996 | 136,655,494 | 134,634,685 |
प्रोभिजनिङ | 2,732,609 | 2,146,521 | 915,637 | 1,095,026 | 573,034 |
नाफा | 103,039 | 2,261,888 | 1,077,116 | ||
वितरणयोग्य नाफा | -811,864 | -876,071 | 1,937,131 | 1,335,875 | 1,497,098 |
खराब ऋण | 4.67% | 4.69% | 2.81% | 1.82% | 1.56% |
प्रति सेयर आम्दानी (रु.) | 9.14 | 1.9 | 19.44 | 14.61 | 18.65 |
आधार दर | 9.99% | 10.80% | 10.75% | 11.09% | 11.37% |
पुँजी कोष | 12.67% | 12.85% | 13.43% | 13.14% | 12.94% |
मर्जरलाई लिएर बैंकिङ क्षेत्रमा एउटा भनाइ नै छ- वान प्लस वान इक्वलटु थ्री (एकमा एक जोड्दा तीन हुन्छ)। तर, पछिल्ला नतिजाले मर्जरले सिनर्जी होइन, संस्थाको वृद्धि रोकिएको तस्बिर देखाएको छ।
‘अहिलेसम्मको तथ्यांकले बिग मर्जरबाट कुनै पक्षलाई फाइदा नभएको नै देखिन्छ,’ एक बैंकरले भने, ‘हुन त वित्तीय क्षेत्रमा लिइएको नीतिले नतिजा देखाउन समय लगाउँछ, पछि राम्रो नतिजा आयो भने अर्को कुरा हो, तर अहिले हेर्दा कसैलाई पनि लाभ भएन।’